Posts

आखिर जीत हमारी उपन्यास समीक्षा

 -:आखिर जीत हमारी:- रामजी दास पुरी (सय्याह सुनामी) द्वारा लिखित यह एक ऐतिहासिक उपन्यास है जो अपने अपने शीर्षक की उपयुक्त व्याख्या करता है। इस उपन्यास में एक तरफ जहां बर्बर हूणों द्वारा भारतीयों पर किए गए जघन्य अत्याचारों को दर्शाया गया है कि किस प्रकार वह बर्बर जाति मानव समाज को पशुओं से भी गिरा हुआ मानती थी समूह के समूह को उजाड़ देना,महिलाओं का,बौद्ध भिक्षुणियों का शील भंग करना मात्र ही नहीं अपितु जन समूह की हत्या कर गांव के गांव जला देना तथा उनकी लाशों पर जश्न मनाना,उनकी हड्डियों को सेकना,मांस को खाना तथा उनकी खोपड़ियों में मदिरा पान करना ऐसे दृश्य हृदय को झकझोर, नसों में रक्त के प्रवाह को बड़ा तथा आंखों में आंसू और प्रतिशोध भर देते हैं वहीं वहीं दूसरी तरफ महाबहु और उसके साथी अपने साथ मिलकर मगध,मालवा,चालुक्य आदि शासकों को संगठित कर हूणों को भारत से भगाने के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देश और धर्म के प्रति अपने सच्चे समर्पण का प्रमाण देते हैं और हूणों को धूल चटा देते हैं जो हृदय में एक उत्साह का संचार करते हैं इस उपन्यास में लेखक बताना चाह रहा है कि कोई भी जाति समाज कितने ही महान...

वसुदेव उपन्यास(नरेंद्र कोहली) समीक्षा

 वसुदेव:- ये कहानी है वसुदेव की ये कहानी है देवकी की ये कहानी है वसुदेव और देवकी के संघर्ष,इच्छा शक्ति,राष्ट्र के प्रति अनन्य समर्पण तथा अपना सब कुछ गंवाकर राष्ट्र सर्वप्रथम की। नरेंद्र कोहली द्वारा लिखित यह उपन्यास एक अनूठा स्वरूप लिए हुए हैं जहां अभी तक अधिकतर बातें कहानियां श्री कृष्ण की मिलती हैं वहीं इस उपन्यास के मुख्य नायक कृष्ण न होकर उनके पिता वसुदेव हैं। पुस्तक की कहानी वही है जो हम सब जानते हैं लेकिन पुस्तक पाठकों को एक नया दृष्टिकोण देना चाहती है जब वसुदेव देवकी के प्रथम पुत्र की कंस हत्या कर देता है तब वसुदेव दुखी मन से अपने गुरु गंगराज से मिलने जाते हैं तो गुरु उनसे पूछते हैं कि क्या जिस समय तुम्हारे पुत्र की हत्या की गई तब वहां और लोग नहीं थे, तो वसुदेव उत्तर देते हैं कि वहां कई सभासद,उच्च वर्ग के लोग,सेनापति और योद्धा थे। गुरुजी आगे पूछते हैं कि क्या उन लोगों ने कंस का विरोध नहीं किया तो वसुदेव ने कहा कि वे सभी मौन थे तब गुरु कहते हैं कि कंस को मारने से अधिक आवश्यक है कंस प्रवृत्ति को मारना अन्याय के सामने चुप रहना ,कुछ लोभ और धन के लिए राष्ट्र को लुटते देखना,अपने स...

कौन चुनौती स्वीकारेगा कौन करेगा परिवर्तन

 कौन चुनौती स्वीकारेगा कौन करेगा परिवर्तन कौन करेगा अर्पित अपना देश के लिए तन मन धन॥ध्रु.॥ कब तक खंडित देश रहेगा कब तक व्यथा सहेगी मां कब तक देशद्रोह पनपेगा कब तक आतंकित सीमा प्रगटे फिर से भीम पराक्रम तभी हटेंगे संकट घन॥1॥ कब तक पश्चिम मोह रहेगा कब तक जिए दीन होकर कब तक शक्तिहीन रहेंगे कब तक खाएंगे ठोकर निज गौरव का भाव लिए उर श्रम से होगा नया किरण॥2॥ कब तक भूखा देश रहेगा कब तक सबको ज्ञान नहीं कब तक मिथ्या भेद रहेगा संस्कृति का सम्मान नहीं राष्ट्र चेतना से ही होगा समरस सुखमय जन जीवन॥3॥

दोस्त मिलते हैं तो थोड़ा मुस्कुरा लेते हैं

 गम के आंसुओं को भी छुपा लेते है, दोस्त मिलते है तो ,थोड़ा मुस्कुरा लेते हैं,,,,।। मन की पीड़ा, चहरे की उदासियों को, वो अक्सर पढ़ लेते है, दोस्त जब मिलते हैं तो, थोड़ा मुस्कुरा लेते है,,,,,।। वो पूछते है, कैसे हो तुम,,, झूठ मूठ का चेहरा बना, थोड़ी हंसी, हम भी हँस देते है, दोस्त जब मिलते हैं तो थोड़ा मुस्कुरा लेते है,,,,,,,।। दुनिया भर के ताने, रिश्तों की बेरुखी, अपनो का तिरस्कार भी सह लेते है, दोस्त जब मिलते हैं तो थोड़ा मुस्कुरा लेते है,,,,,,।। जब छोड़ देते है साथ सब, टूटने लगते है रिश्ते सारे, छाने लगता है जीवन में अंधेरा, तब दोस्त आकर ,हमें थाम लेते है, दोस्त जब मिलते हैं, तो थोड़ा मुस्कुरा लेते है।।

भारत मां का मान बढ़ाने बढ़ते मां के मस्ताने

भारत मां का मान बढ़ाने बढ़ते मां के मस्ताने कदम कदम पर मिल जुल गाते वीरों के व्रत के गाने…॥ध्रु.॥ ऋषियों के मंत्रों की वाणी भरती साहस नस नस में चक्रवर्तियों की गाथा सुन नहीं जवानी है बस में हर हर महादेव के स्वर से विश्व गगन को थर्राने॥1॥ हम पर्वत को हाथ लगाकर संजीवन कर सकते हैं मर्यादा बन कर असुरों का बलमर्दन कर सकते हैं रामेश्वर की पूजा करके जल पर पत्थर तैराने॥2॥ हिरण्याक्ष का वक्ष चीर दे नरसिंह की दहाड़ लिए कालयवन का काल बने जो योगेश्वर की नीति लिए चक्र सुदर्शन की छाया में गीता अमृत बरसाने॥3॥ जरासंध छल बल दिखला ले अंतिम विजय हमारी है कालयवन का काल बने जो योगेश्वर गिरधारी है अर्जुन का रथ हांक रहा जो हम सब उसके दीवाने॥4॥

भारत हमारी मां है

भारत हमारी माँ है माता का रूप प्यारा करना इसी की रक्षा कर्तव्य है हमारा ॥ध्रु.॥ जननी समान धरती जिस पर जनम लिया है निज अन्न वायु जल से जिसने बडा किया है जीवन वो कैसा जीवन इस पर अगर न वारा ॥१॥ स्वर्णिम प्रभात जिसकी अमृत लुटाने आए जहाँ सांझ मुस्कुराकर दिन की थकन मिटाए दिन रात का चलन भी जहां शेष जग से न्यारा ॥२॥ जहाँ घाम भीगा पावस भिनी शरद सुहाये बीते शिशिर को पतझड देकर वसन्त जाये जिसे धूप छांव वर्षा हिमपात ने सँवारा ॥३॥ पावन पुनीत मा का मंदिर सहज सुहाना फिर से लुटे न बेटो तुम नींद मे न खोना जागृत सुतों का बल ही मा का सदा सहारा ।४॥

तन्त्र है नूतन भले ही

तन्त्र है नूतन भले ही चिर पुरातन साधना। संघ में साकर अनगिन है युगों की कल्पना॥ विश्व गुरु यह राष्ट्र शाश्वत सूत्र में आश्वस्त हो। सभ्यता का हो निकेतन यह सुमंगल भाषना॥१॥ ज्ञान श्रद्घा कर्म तीनों मिल समन्वित रुप हो। वेद से आई अखंडित हिन्दु की ध्रुव धारणा॥२॥ तीन गुण नव रस सुशोभित सप्त रंगों का धनुष। ऐक्य अरु वैविध्य की है नित्य नूतन सर्जना॥३॥ सूर्यवंशी चक्रवर्ती अग्निमुख ऋषि त्याग धन। सच्चिदानन्द -रुपिणी हैं हिन्दु की परियोजना॥४॥ विश्व व्यापी हो साधना हो सर्व मंगल कामना। पूर्ण वैभव से सतत हो मातृ पद युग वन्दना॥५॥