दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी
दिव्य ध्येय की ओर तपस्वी जीवन भर अविचल चलता है जीवन भर अविचल चलता है।।ध्रु.।। सज धज कर आए आकर्षण,पग पग पर झूमते प्रलोभन होकर सबसे विमुख बटोही,पथ पर सम्भल सम्भल बढ़ता है।।1।। अमरतत्व की अमिट साधना,प्राणों में उत्सर्ग कामना जीवन का शाश्वत व्रत लेकर,साधक हंस कण कण गलता है।।2।। पतझड़ के झंझावातों में, जग के घातों प्रतिघातों में सुरभि लुटाता सुमन सिंहरता,निर्जनता में भी खिलता है।।3।। सफल विफल और आस निराशा, इसकी और कहां जिज्ञासा बीहड़ में भी राह बनाता, राही मचल मचल चलता है।।4।।