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Showing posts from August, 2018

भारत हमारी मां है

भारत हमारी माँ है माता का रूप प्यारा करना इसी की रक्षा कर्तव्य है हमारा ॥ध्रु.॥ जननी समान धरती जिस पर जनम लिया है निज अन्न वायु जल से जिसने बडा किया है जीवन वो कैसा जीवन इस पर अगर न वारा ॥१॥ स्वर्णिम प्रभात जिसकी अमृत लुटाने आए जहाँ सांझ मुस्कुराकर दिन की थकन मिटाए दिन रात का चलन भी जहां शेष जग से न्यारा ॥२॥ जहाँ घाम भीगा पावस भिनी शरद सुहाये बीते शिशिर को पतझड देकर वसन्त जाये जिसे धूप छांव वर्षा हिमपात ने सँवारा ॥३॥ पावन पुनीत मा का मंदिर सहज सुहाना फिर से लुटे न बेटो तुम नींद मे न खोना जागृत सुतों का बल ही मा का सदा सहारा ।४॥

तन्त्र है नूतन भले ही

तन्त्र है नूतन भले ही चिर पुरातन साधना। संघ में साकर अनगिन है युगों की कल्पना॥ विश्व गुरु यह राष्ट्र शाश्वत सूत्र में आश्वस्त हो। सभ्यता का हो निकेतन यह सुमंगल भाषना॥१॥ ज्ञान श्रद्घा कर्म तीनों मिल समन्वित रुप हो। वेद से आई अखंडित हिन्दु की ध्रुव धारणा॥२॥ तीन गुण नव रस सुशोभित सप्त रंगों का धनुष। ऐक्य अरु वैविध्य की है नित्य नूतन सर्जना॥३॥ सूर्यवंशी चक्रवर्ती अग्निमुख ऋषि त्याग धन। सच्चिदानन्द -रुपिणी हैं हिन्दु की परियोजना॥४॥ विश्व व्यापी हो साधना हो सर्व मंगल कामना। पूर्ण वैभव से सतत हो मातृ पद युग वन्दना॥५॥

स्वयं अब जागकर हमको,जगाना देश है अपना

स्वयं अब जागकर हमको,जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना, जगाना देश है अपना ॥ध्रु.॥ हमारे देश की मिट्टी हमें प्राणों से प्यारी है यहीं के अन्न जल वायु परम श्रद्धा हमारी है स्वभाषा है हमें प्यारी ओ प्यारा देश है अपना ॥1॥ जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना समय है अब नहीं कोई गहन निद्रा में सोने का समय है एक होने का न मतभेदों में खोने का बढ़े बल राष्ट्र का जिससे वो करना मेल है अपना ॥2॥ जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना जतन हो संगठित हिंदू सक्रिय भाव भरने का जगाने राष्ट्र की भक्ति उत्तम कार्य करने का समुन्नत राष्ट्र हो भारत यही उद्देश्य है अपना ॥3॥ जगाना देश है अपना जगाना देश है अपना

हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे

हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे  संगठन का भाव भरते जा रहे ॥ध्रु.॥ यह सनातन राष्ट्र मंदिर है यहां  वेद की पावन ऋचाएं गूंजती प्रकृति का वरदान पाकर शक्तियां देव निर्मित इस धरा को पूजती हम स्वयं देवत्व गढ़ते जा रहे ॥1॥   हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे राष्ट्र की जो चेतना सोई पड़ी  हम उसे फिर से जगाने आ गए  परम पौरुष की पताका हाथ ले  क्रांति के नवगीत गाने आ गए  विघ्न बाधा शैल चढ़ते जा रहे ॥2॥ हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे हम करें युवाओं का आह्वान फिर  शक्ति का नव ज्वार पैदा हो सके  राष्ट्र रक्षा का महा अभियान ले  संगठन भी तीव्रगामी हो सके  लक्ष्य का संधान करते जा रहे ॥3॥ हम विजय की ओर बढ़ते जा रहे