भारत हमारी मां है
भारत हमारी माँ है माता का रूप प्यारा करना इसी की रक्षा कर्तव्य है हमारा ॥ध्रु.॥ जननी समान धरती जिस पर जनम लिया है निज अन्न वायु जल से जिसने बडा किया है जीवन वो कैसा जीवन इस पर अगर न वारा ॥१॥ स्वर्णिम प्रभात जिसकी अमृत लुटाने आए जहाँ सांझ मुस्कुराकर दिन की थकन मिटाए दिन रात का चलन भी जहां शेष जग से न्यारा ॥२॥ जहाँ घाम भीगा पावस भिनी शरद सुहाये बीते शिशिर को पतझड देकर वसन्त जाये जिसे धूप छांव वर्षा हिमपात ने सँवारा ॥३॥ पावन पुनीत मा का मंदिर सहज सुहाना फिर से लुटे न बेटो तुम नींद मे न खोना जागृत सुतों का बल ही मा का सदा सहारा ।४॥